करोगे याद तो हर बात याद आएगी,
गुज़रते वक्त की हर मौज़ ठहर जाएगी..
ये चाँद बीते ज़मानों का आईना होगा,
भटकते अब्र में, चेहरा कोई बना होगा,
उदास राह कोई दास्तां सुनाएगी..
करोगे याद तो..
बरसता-भीगता मौसम धुआँ-धुआँ होगा,
पिघलती शम्मों पे दिल का मेरे ग़ुमां होगा,
हथेलियों की हिना, याद कुछ दिलायेगी,
करोगे याद तो!
गली के मोड़ पे, सूना सा कोई दरवाज़ा,
तरसती आँखों से रस्ता किसी का देखेगा,
निगाह दूर तलक जा के लौट आएगी,
करोगे याद तो हर बात याद आयेगी..
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ये गीत (या ग़ज़ल , जो भी कहें) बेहद intense है और दिल के बेहद ही करीब रहा है।
अस्सी का दशक हिंदी फिल्मी गीतों के लिए कोई खास और यादगार दशक नहीं माना जाता. 60s 70s को सुमधुर बनाने वाले म्यूजिक स्टार्स शंकर जयकिशन , मदनमोहन, SD बर्मन, पंचम, फिर लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से होते हुए हिंदी गीतों को संगीतबद्ध करने की कमान 80s में बप्पी दा तक पहुँची तो लोग यहाँ तक सोचने लगे कि क्या गीतों के साथ जुड़ी संवेदना और मधुरता कभी लौटेगी?
पर इस दौर में फूहड़ फिल्मी गीतों द्वारा पैदा किया गया शून्य ग़ज़लों को आम जनों के ज्यादा करीब ले आया। इसी दौर में प्राइवेट ग़ज़ल एलबम्स चुनिंदा संगीत प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हुए। 80s में जगजीत चित्रा , पंकज उधास, चंदन दास, अनुप जलोटा, ग़ुलाम अली, पीनाज मसानी , भूपिंदर मिताली, राजेंद्र & नीना मेहता, तलत अज़ीज़, कई कलाकार इस रस्ते म्यूजिक इंडस्ट्री में आए और अपने संगीत से भारतीय संगीत प्रेमियों को संगीत के साथ थामे रखा। 80s में ग़ज़लों को मिली बेहतर स्वीकार्यता ने संवेदनशील और लीक से हटकर फिल्में बनाने वाले निर्देशकों को अपनी फिल्मों में ग़ज़लों और नज़्मों के इस्तेमाल के लिए प्रेरित किया।
अस्सी के दशक की शुरुआत में तीन ऐसी फिल्में आयीं जो फिल्मी ग़ज़लों की सफलता के लिए मील का पत्थर साबित हुई। ये फिल्में थी अर्थ, बाजार और उमराव जान। उस ज़माने में शायद ही कोई संगीत प्रेमी होगा जिसके पास इन तीनों फिल्मों के कैसेट्स ना रहे हों। जहाँ अर्थ का संगीत ख़ुद ग़ज़ल सम्राट कहे जाने वाले जगजीत सिंह ने दिया था वहीं उमराव जान और बाजार के संगीतकार ख़य्याम थे। खय्याम अपनी claasical music की गहरी जानकारी एवं संगीत के perfection के सनक एवं जुनून के लिए जाने जाते थे। सागर सरहदी और उनकी फ़िल्म बाजार से जुड़े हुए कई किस्से हैं जो आप लोगों ने पढ़े ही होंगे। आज इसके एक गाने करोगे याद तो..पर बात करते हैं।
ख़य्याम साहब ने इन फिल्मों में बेहद नामचीन शायरों जैसे मीर तकी मीर, मिर्जा शौक़, शहरयार और मखदूम मोहिउद्दीन की शायरी का इस्तेमाल किया। पर उनकी इस फेरहिस्त में एक अपेक्षाकृत गुमनाम शायर का नाम और भी था। जानते हैं कौन थे वो ? ये शायर थे बशरत नवाज़ खान जिन्हें दुनिया बशर नवाज़ के नाम से जानती थी।
सन 1935 में औरंगाबाद, महाराष्ट्र में जन्मे थे। बशर नवाज़ अपने समकालीनों की तरह युवावस्था में वामपंथी विचारधारा (जो कि वर्ग रहित समाज की परिकल्पना पर आधारित थी) से प्रभावित रहे। कविता के अलावा समालोचना, नाट्य लेखन जैसी विधाओं में भी उन्होंने हाथ आज़माया। दूरदर्शन के धारावाहिक अमीर खुसरो के लिए पटकथा लिखी और 'बाजार' के अलावा 'लोरी ' और 'जाने वफ़ा' जैसी फिल्मों के लिए गीत भी लिखे। पर हिंदी फिल्म संगीत में वो अपनी भागीदारी को बाजार फिल्म के गीत करोगे याद तो हर बात याद आयेगी ...से हमारे हृदय में हमेशा हमेशा के लिए अंकित कर गए।
गीत के भाव :
ये तो हम सभी जानते हैं कि ज़िंदगी की पटकथा को तो ऊपर वाला रचता है, यानी जीवन अनिश्चितता लिए हुए होता है। जाने कब कैसे किसी से मिलाता है। साथ बिताए पलों की खुशबू से दिल में अरमान जगने ही लगते हैं कि एक ही झटके में अलग भी कर देता है । फिर इंसान को छोड़ देता है अकेला अपने आप से, अपने वज़ूद से जूझने के लिए। साथ होती हैं तो बस यादें जो उन गुजरे लमहों की कसक को रह रह कर ताज़ा करती रहती हैं।
फिल्म के किरदारों के बीच की कुछ ऐसी ही परिस्थितियों को नवाज़ साहब ने चाँद, बादल, बरसात और दीपक जैसे बिंबों में अदभुत और खूबसूरत ढंग से लिखा है, और फिर इसे खय्याम एवं भूपिंदर ने अपने संगीत एवं आवाज़ से कर्णप्रिय अभिव्यक्ति दी है, गीत में चार चांद लगा दिये हैं । गीत में शीशे की तरह चमकते चाँद के बीच भटकते बादलों में बनते चेहरे की उनकी सोच हो या फिर जल जल कर पिघलती शम्मा से वियोग में डूबे दिल की तुलना..भूपेंद्र (भूपिंदर सिंह) की आवाज़ में इन लफ्जों को सुन करके मन उदास, फिर और उदास होता चला जाता है..
80 वर्ष की उम्र में जुलाई 2015 में गीतकार बशर नवाज़ का औरंगाबाद महाराष्ट्र में निधन हो गया। किन्तु इस गीत से वो हिंदी फिल्मी गीत पसंद करने वालों के दिलों में अपनी खास छाप छोड़ गए।
आज न तो उनकी जन्मतिथि है और न ही पुण्यतिथि पर ये गाना सुना, और लेखक को याद किया..
करोगे याद तो हर बात याद आएगी..जब भी ये गीत सुना, दिल एक अलग ही Nostalgia में डूब गया..आप भी सुनिए..